آن یار که عهد دوستاری بشکست
میرفت و منش گرفته دامان در دست
میگفت دگرباره به خوابم بینی
پنداشت که بعد از آن مرا خوابی هست
سعدی
میرفت و منش گرفته دامان در دست
میگفت دگرباره به خوابم بینی
پنداشت که بعد از آن مرا خوابی هست
سعدی
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